Information:- सबसे पहले बात करें गुजरात से अरब सागर की दूरी तो यह करीब 100 किलोमीटर दूर एक “कक्ष का रण” है, जो कि हमारे पूरे विश्व में एक अलग ही नाम से जाना जाता है,और वह है,नमक का रेगिस्तान,यदि बात करें इस रेगिस्तान की आकार की तो इसकी आकृति कुछ ऐसे दिखती है जैसे कि एक कछुए की आकृति होती है,कछुए की आकृति जैसा दिखने वाला “कक्ष का रण” दो हिस्सों में बटा हुआ है जिसका नाम है,बड़ा रण और छोटा रण
गुजरात का “कक्ष का रण” ऐसा है,जो कि पूरी दुनिया के सबसे बड़े रेगिस्तान में से एक है, इस” कच्छ के रण” में सदियों से अगरिया समुदाय का रैन बसेरा रहा है और आगे भी रहेगा वहीं यदि बात करें इन समुदाय के लोगों की तो ये लोग चिलचिलाती धूप में अपना पसीना बहा कर अपने देश भारत के लिए 75% तक नमक का उत्पादन किया करते हैं,प्रतिवर्ष
ये अगरिया समुदाय के लोग पहले नमक की खेती परंपरागत तरीके से किया करते थे परंतु अब वे सोलर पैनल का यूज कर रहे हैं,इससे इन अगरिया समुदाय के लोगों की आय में वृद्धि हो ही रही है साथ ही हमारे पर्यावरण को भी प्रदूषण मुक्त होने में काफी मदद भी मिल रहा है,
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यह सोलर पैनल का जो मुद्दा है यह एक बहुत नया मुद्दा था इस मुद्दे को लेकर “द बेटर इंडिया” ने सुरेंद्रनगर जिले के मीठा कोट गांव के रहने वाले भरत भाई सुमेरा से बात की बातचीत के दौरान भरत भाई इस बात को बताते हैं,की
गुजरात में नमक की खेती 600-700 सालों से हो रही है, और उन्होंने ऐसा भी बताया कि पुराने समय में बैल और चमड़ा की मदद से नमक निकाला जाता था, और साथ ही पकाया जाता था इस बीच उन्होंने एक बात और बताइए और वो बात यह है, कि
जब समुद्र का जलस्तर काफी नीचे चला जाता था तो किसानों को यानी कि अगरिया समुदाय के लोगों को नमक को बाहर निकालना एक बहुत कठिन काम सा हो गया था तो इसी बीच में ये लोग डीजल इंजन का इस्तेमाल करने लगे
इस नमक के उत्पादन में इन आंगड़िया समुदाय के लोगों का खर्च 30 से 35000रू तक आता था, और वह आगे बताते हैं, कि अगरिया समुदाय के लोग यहां पाटण, बनासकांठा, कक्ष, सुरेंद्रनगर और साथ ही मोरबी जैसे पांच ऐसे जिले हैं गुजरात के जिनमें 109 गांव के 8000 से अधिक परिवार नमक बनाने का काम करते है,
इन अगरिया समुदाय के हर एक परिवार के पास खुद की डीजल इंधन था जिससे कि वायु प्रदूषण भी काफी होता था,गुजरात के अगरिया समुदायों के लोगों के दिमाग में 2009 एक ऐसा बात दौड़ा जो कि उन्हें इस मुद्दे पर विचार विमर्श करने के लिए मजबूर कर दिया
जिससे कि उन्होंने बेंगलुरु से 4000 से 5000 तक सोलर पैनल मंगवाए और उन्होंने इन सोलर पैनल ओं को 2 वर्ष तक इन सोलर पैनल को प्रयोग के तौर पे इस्तेमाल किया।
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आप इतने में अगरीया समुदाय के लोगों का जो यह सोलर पैनल का जो प्रयोग था वह काफी सफल निकला अब हुआ ये कि अगरिया समुदाय के लोग 2013 में बड़े पैमाने पर सोलर पैनल लगाने के लिए राज्य के साथ केंद्र सरकार को भी आवेदन दिया
इस आवेदन के पश्चात इन गुजरात के 5 जिलों में 4000 से 5000 तक सोलर पैनल लगाए गए सरकार के द्वारा इस सोलर पैनल लगाने का नतीजा यह हुआ
कि अगरिया समुदाय के लिए न सिर्फ नमक की खेती करना आसान हो गया बल्कि डीजल इंजन से होने वाले जो भी प्रदूषण थे उस पर भी काफी लगाम लग गई यादि आंकड़ों की मानें तो अगरिया किसानों की ना सिर्फ अच्छी कमाई हो रही है,
बल्कि उन्हें मनोरंजन और घर के अन्य कामों के लिए भी लगातार बिजली भी मिल रही है। आपको कैसा लगा यह जानकारी अपना फीडबैक कमेंट के माध्यम से जरूर दें हमें काफी खुशी होगी