रोकेट को ISS तक पहुँचने में 22 घंटे क्यों लगते है | (Why it takes a rocket 22 hours to cover the 400 km to the International space station)

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स्पेस एक्स के राकेट 40 ,000 किमी प्रति किमी की गति प्राप्त कर सकते है ……..इसके बावजूद भी स्पेस में एक सीधी  रेखा में गति करना भबहुत ही मुश्किल काम है ….. भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्री राजा चारी के नेतृत्व में, एक नासा मिशन ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट के ऊपर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए उडान भरी । रॉकेट 39,000 किमी प्रति घंटे से अधिक की गति से उड़ने में सक्षम  है, फिर भी अन्तरिक्ष यात्रियों को ISS तक पहुंचने में लगभग 22 घंटे लगेंगे। तो, इतनी दूरी तय करने में इतना समय क्यों लगता है की जबकि यही दूरी एक कार कुछ घंटो में ही तय कर सकती है |

राकेट सीधे ISS तक क्यों नहीं पहुँच सकते  (Why cant Rocket head straight up to the ISS )

लगातार बढ़ते अन्तरिक्ष कार्यक्रमों की वजह से अन्तरिक्ष में ट्राफिक काफी बढ़ गया है …….इसलिए अन अन्तरिक्ष में यात्रा करना काफी कठिन हो गया है , .आज हमारे पास ऐसे राकेट  Rocket ) हैं|  जो सुपर सोनिक स्पीड से पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर ले जा सकते है |  आज के वक्त में पृथ्वी पर अधिकतम गति 1200 किमी प्रति घंटा तक है , जबकि सबसे तेज़ फाइटर जेट (Fighter jet ) की गति 3500 किमी प्रति घंटा तक है | और स्पेस बाउंड राकेट (Space bound rocket ) की अधिकतम गति 30,000 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है ..| लेकिन यह यहाँ यह बात भी सच है की  अंतरिक्ष यात्रा का समय इतना सीधा नहीं है जितना हम सोच सकते हैं , और कहीं भी पहुंचना पूरी तरह से इस बात पर निर्भर नहीं है कि आप कितनी तेजी से यात्रा करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि अंतरिक्ष में चीजें स्थिर नहीं हैं|  और ग्रह, उपग्रह और आईएसएस जैसी चीजें काफी तेजी से आगे बढ़ रही हैं। उदाहरण के लिए, पृथ्वी लगभग 108,000 किमी प्रति घंटे की गति से लगभग एक गोलाकार कक्षा में सूर्य के चारों ओर घूमती है।  आईएसएस (ISS )  लगभग 28,000 किमी प्रति घंटे की गति से पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इसे इतनी तेजी से यात्रा करने की आवश्यकता है इसलिए है  क्योंकि पृथ्वी की निचली कक्षा  (LEO ) में है और अगर इसकी गति कम हुई तो यह धरती पर गिर जाएगा   | इसलिए यह इतनी तेज़ी से घूमता है की इसके घूमने का पथ पृथ्वी के वक्रता (Curvature of earth ) से मेल खाता है | जिससे यह लगातार पृथ्वी के चारो और घूमता रहता है |  लेकिन इससे यह बात पता नहीं चलती  कि आईएसएस तक पहुंचने के लिए अंतरिक्ष यान को लगभग एक दिन क्यों लगता है?

स्पेसक्राफ्ट आईएसएस तक कैसे पहुंचता है?( HOW DO SPACECRAFT REACH ISS? )

आईएसएस (ISS ) तक पहुंचने के लिए, एक रॉकेट को पहले उस ऊंचाई पर जाना पड़ता है जहां आईएसएस स्थित है और फिर उस कक्षा में जाना होता  है जिसमें वह आगे बढ़ रहा है। उसके बाद वो उस ऑर्बिट में पृथ्वी के चारो और घूमने लगता है , जहाँ ISS गति कर रहा है | इसके बाद डॉकिंग की  जाती है | डॉकिंग का मतलब होता है दो स्पेस क्राफ्ट का आपस में जुड़ना |आईएसएस (ISS )  के साथ अंतरिक्ष यान को डॉक करने, या मंगल या चंद्रमा पर एक टीम को उतारने  में कई कारक (Factor )  शामिल हैं। उनमें से प्रमुख गति की आवश्यकता है। यानी पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव (Gravitational Force ) से बचने के लिए आवश्यक गति। इसके लिए एक रॉकेट को बड़ी थ्रस्टिंग पावर लगाने की जरूरत होती है। पर यह शक्ति इस उस ईंधन से मिलती है जो की राकेट के इंजन में भरा हुआ है | लेकिन ज्यादा थ्रस्ट के लिए ज्यादा ईंधन की ज़रूरत पड़ती है जिससे स्पेस क्राफ्ट का काम और मुश्किल हो जाता है | इसलिए समय वैज्ञानिक  अब  अंतरिक्ष यान (Space craft ) को लॉन्च करते वक्त उसे अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए कम ऊर्जा मोड की खोज कर रहे है ।

 इसके लिए वे एक विशेष प्रकार के ऑर्बिट (Orbit ) का यूज़ करते है , जिसे होहमैन ट्रांसफर (Hohmann Transfer orbit ) ऑर्बिट कहा जाता है। होहमैन स्थानांतरण (Hohmann Transfer )को “एक कक्षीय युद्धाभ्यास (an orbital manoeuvre)  के नाम से भी जाना जाता है ,  जो एक उपग्रह या अंतरिक्ष यान को एक गोलाकार कक्षा (circular orbit  ) से दूसरी कक्षा में स्थानांतरित करता है” और इसका नाम जर्मन वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है जिन्होंने 1925 में इसकी कल्पना सबसे पहले की थी | हालांकि इस प्रक्रिया में  एक वृत्ताकार कक्षा (circular orbit  ) से दूसरी वृत्ताकार कक्षा (circular orbit)  में काफी कम ईंधन लगता  है,लेकिन यह काफी धीमी प्रक्रिया है |  और इसकी वजह से ही  आईएसएस ( ISS ) तक पहुंचने में 22 घंटे या मंगल पर पहुंचने में आठ महीने  लगते हैं, लेकिन अगर हमें केवल एक सीधी रेखा ( straight path ) में जाना होता है हम काफी कम समय में यह यात्रा पूर्ण कर लेते | एक बार रॉकेट के उड़ान भरने के  के बाद, उसे पहले पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षणसे बाहर निकलना होता है , उसके बाद उसे सही ऑर्बिट में पहुचना होता है | हालांकि अगर स्पीड ज्यादा तेज़ हुई तो आप आईएसएस  (ISS ) को ओवरशूट कर सकते हैं, और बहुत धीमी गति से जाना तो मुमकिन ही नहीं  है क्योंकि रॉकेट पृथ्वी पर वापस गिर जाएगा। आप अन्तरिक्ष में चाहे ISS पर जाए या फिर किसी दुसरे गृह पर सबसे पहले आपको Hohmann Transfer orbit प्रिक्रिया से सही ऑर्बिट को चुनना ही पड़ता है  | इस प्रकार, होहमैन ट्रांसफर को पूरा करने के लिए, रॉकेट पहले अंतरिक्ष में जाने के लिए अपने थ्रस्टर्स का उपयोग करता है और, एक बार वहां, यह दूसरी, गोलाकार कक्षा (circular orbit )  प्राप्त करने के लिए अपने इंजनों को फिर से चलाता है | इसके बाद वोह सही ऑर्बिट में पहुचं कर ISS के साथ डॉकिंग के लिए कोशिश करता है |

लेकिन अगर आईएसएस और अंतरिक्ष यान (Space Craft )  दोनों सर्कुलर मोशन  (Circular motion ) से आगे बढ़ रहे हैं, तो अंतरिक्ष से वीडियो ऐसे क्यों दिखते हैं जैसे चीजें अल्ट्रा स्लो टाइम में हो रही हैं? यह सापेक्ष गति (relative speed  )द्वारा समझाया गया है। जब आप पृथ्वी पर तेजी से आगे बढ़ रहे होते हैं, तो आपके आस-पास की चीजें स्थिर होती हैं। लेकिन अगर सब कुछ एक ही गति से आगे बढ़ रहा था, तो आपको पता नहीं चल पाता  कि वे कितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। यास कीजिए जब आप ट्रेन के अंदर है और दो ट्रेन एक साथ चल रही है तो समझ नहीं आता की कौन से ट्रेन चल रही है वो ट्रेन हमें खडी हुई प्रतीत होती है |ऐसा ही अन्तरिक्ष में भी होता है |

क्या अंतरिक्ष तक पहुंचने का कोई आसान तरीका नहीं है? (IS THERE NO SIMPLER WAY TO REACH SPACE?)

अभी, होहमैन ट्रांसफर स्पेस क्राफ्ट  के लिए सबसे अच्छा path  है, लेकिन वैज्ञानिकों   भविष्य में गहरे आसमान में प्रवेश की सुविधा के लिए ‘अंतरिक्ष लिफ्ट’  (Space lift ) बनाने के बारे में सोच रहे हैं |

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA )  के अनुसार, एक अंतरिक्ष लिफ्ट में जो शामिल होगा, वह है “हमारे ग्रह की सतह से अंतरिक्ष में फैली एक लंबी केबल, जिसका द्रव्यमान भूस्थैतिक पृथ्वी की कक्षा (GEO) पर है”, जो कि 35,000 किमी से अधिक की ऊंचाई पर है। “केबल के साथ यात्रा करने वाले विद्युत चुम्बकीय वाहन(Electromagnetic vehicles )  पृथ्वी और अंतरिक्ष के बीच लोगों, पेलोड और बिजली को स्थानांतरित करने के लिए बड़े पैमाने पर परिवहन प्रणाली के रूप में काम कर सकते हैं,” | सोचिए कितना मज़ेदार होगा न जैसे हम लिफ्ट की मदद से एक मिनिट में कई मीटर ऊंची बिल्डिंग की छत पर पहुँच जाते है , वैसे ही लिफ्ट से कुछ पल में ही हम अन्तरिक्ष में पहुँच जाएंगे |

हालांकि, एक का निर्माण उतना आसान नहीं होगा जितना लगता है, क्योंकि इस तरह के केबल को अत्यधिक मजबूत होने की आवश्यकता होगी और इसे पृथ्वी पर गिरने से रोकने के लिए, अंतरिक्ष में एक बड़े असंतुलन द्रव्यमान से बंधे होने की आवश्यकता होगी, संभवतः एक क्षुद्रग्रह “उस उद्देश्य के लिए स्थानांतरित हो गया”, या चंद्रमा। जबकि एक अंतरिक्ष लिफ्ट के लिए विचार एक सदी से अधिक पुराना है, ऐसा प्रतीत होता है कि अभी भी कुछ तरीके हैं इससे पहले कि इसे महसूस किया जा सके। तब तक समय, अंतरिक्ष यात्रा विस्तृत गणना और टन ईंधन जलाने वाले बड़े पैमाने पर रॉकेटों की तैनाती पर निर्भर करेगी।

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