गलन किसे कहते हैं | गलनांक किसे कहते है |
गलन –
किसी स्थिर ताप पर किसी पदार्थ को ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में बदलने की प्रक्रिया को गलनांक या गलनांक कहते हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि किसी भी ठोस में उसके कणों, अणुओं या परमाणुओं को एक निश्चित क्रम में पास में व्यवस्थित किया जाता है, जब उन्हें गर्म किया जाता है, तो वे उसके कणों में गतिज ऊर्जा के मूल्य में वृद्धि के कारण तेजी से कंपन करने लगते हैं। यदि ठोस को लगातार गर्म किया जाता है, तो इन कणों के कंपन का आयाम इतना बढ़ जाता है कि ये कण अपनी स्थिति छोड़कर ठोस की परिधि में स्वतंत्र रूप से घूमने लगते हैं, इस स्थिति को गलनांक या गलनांक कहते हैं, क्योंकि इस स्थिति में ठोस पदार्थ द्रव पदार्थ में परिवर्तित होने लगता है और द्रव्य का ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तन गलनांक या गलनांक कहलाता है।
गलनांक :
वह ताप जिस पर कोई ठोस पदार्थ द्रव अवस्था में परिवर्तित होने लगता है, उसका गलनांक कहलाता है। जब एक कप में बर्फ लेते है और जब इसे गर्म करते है तो बर्फ धीरे-धीरे पानी में बदल जाती है, यानी पदार्थ पहले ठोस अवस्था (बर्फ) में था, जब इसे गर्म किया गया तो धीरे-धीरे पानी तरल में बदलने लगा, इस प्रक्रिया गलन कहते हैं।
ठोस में प्रवाहित होने का गुण कम होता है अर्थात पदार्थ ठोस अवस्था में प्रवाहित नहीं होता है, लेकिन जब ठोस को गर्म किया जाता है तो उसमें धीरे-धीरे बहने का गुण उत्पन्न हो जाता है और जब ठोस पूरी तरह से तरल में बदल जाता है तो इसमें इससे प्रवाह की गुणवत्ता भी बहुत बढ़ जाती है, इसलिए हम कह सकते हैं कि तापमान बढ़ने से ठोस पदार्थों में बहने की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
जब कोई पदार्थ शुद्ध रूप में होता है तो वह एक निश्चित तापमान के बाद पिघलने लगता है और इस निश्चित तापमान के बाद ठोस पदार्थ पिघलने लगता है, इसे गलनांक कहते हैं।
यदि पदार्थ अशुद्ध अवस्था में है, तो उसका गलनांक निश्चित नहीं होता बल्कि एक परास निश्चित होता है जिसमें वह ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
इस चीज को ऐसे भी समझ सकते है की जब किसी पदार्थ को गर्म किया जाता है तो उसमे मौजूद अणुओं की गति कर्ण की क्षमता बढ़ जाती है और वो एक जगह से दूसरी जगह प्रवाहित होने लगते है जिसकी वजह से पदार्थ की अवस्था बदल जाती है | जिसे हम गलन कहते है | और जिस तापमान पर यह प्रक्रिया होती है उसे उस पदार्थ का गलनांक कहा जाता है |
अणुगतिज सिद्धांत के आधार पर गलन की व्याख्या :
किसी ठोस को गर्म करने पर अर्थात् उसका ताप बढ़ाने पर उसके कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है और कणों के बीच की दूरी बढ़ जाती है, जिससे उनके बीच का अंतराआण्विक आकर्षण बल कम होने लगता है। गर्म करने पर ऐसी स्थिति आती है जब ठोस के कण स्वतंत्र रूप से घूमने लगते हैं और क्रिस्टल जाली टूट जाती है और ठोस द्रव में बदलने लगता है, इस प्रक्रिया को गलनांक कहते हैं। जिस तापमान पर पिघलने की प्रक्रिया होती है उसे गलनांक कहते हैं।
गलनांक की गुप्त ऊष्मा ठोस को गलनांक पर पुनः गर्म करने पर तापमान में वृद्धि नहीं होती है, क्योंकि दी गई ऊष्मा ठोस को पिघलाने में खर्च होती है अर्थात अंतराआण्विक आकर्षण बलों को कम करने में। जब पूरा ठोस पिघलकर द्रव में बदल जाता है, तो तापमान फिर से बढ़ जाता है। किसी ठोस के 1 ग्राम को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे उस ठोस की गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।