चाँद के क्रेटर का नाम आर्कटिक खोजकर्ता मैथ्यू हेंसन के नाम पर रखा गया (The moon’s crater is named after Arctic explorer Matthew Henson)
चाँद हमारी धरती का एक प्राक्रतिक उपग्रह ( Natural Satellite ) है | जो पृथ्वी के चक्कर लगाता रहता है |
लेकिन पृथ्वी के सामान वहां जीवन मुमकिन नहीं है | क्यूंकि वहां न तो ऑक्सीजन मौजूद है , और न पानी |
इसके अलावा वहां केवल ऊबड़ खाबड़ ज़मीन और गहरे गहरे गड्डे (Crater )ही मौजूद है | पहले ज़माने में जब दूरबीन का आविष्कार नहीं हुआ था , तब लोग ऐसी कहानिया बनाते थे की चाँद पर कोई बुढिया बैठी सूत कातती रहती है | लेकिन फिर जब लोगो ने दूरबीन से चाँद को देखा तो उन्हें पता चला की चाँद पर केवल सपाट मैदान है | जो दूर दूर तक फैला हुआ है | दूरबीन से देखने पर वहां गहरे रंग के धब्बे दीखते थे इसलिए खगोल शास्त्रियों को लगा की शायद यहाँ पर समुद्र होंगे | कभी-कभी इन मैदानों पर कटोरी जैसी आकृतियाँ और लंबी घाटियाँ देखी जाती थीं। चांद के आगे मैदानों के अलावा पहाड़-पहाड़, कटोरी जैसे गड्ढे आदि भी दिखाई देते थे |
यहां हम बात कर रहे हैं, चांद की पूरी सतह पर दिखने वाली एक अनोखी आकृति कि जो कि एक गोल कटोरे के आकार की है | इन्हें आमतौर पर क्रेटर कहा जाता है। इन्हें क्रेटर कहने की खास वजह यह थी कि इनका आकार काफी हद तक पृथ्वी पर दिखने वाले ज्वालामुखीय क्रेटर (Volcanic crater ) से मिलता-जुलता था। चंद्रमा के ये क्रेटर लंबे समय से खगोलविदों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं।
क्रेटर का निर्माण कैसे होता है (How Craters are formed )
जब ये क्रेटर चांद पर दिखाई दिए तो सवाल उठा कि आखिर इन गड्डों का निर्माण कैसे हुआ ? 19वीं सदी के अंत तक, क्रेटर की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग मत थे। इन्हीं में से एक मान्यता थी कि अतीत में जब चंद्रमा गर्म होता था, तब बुलबुले के रूप में गैसीय पदार्थों के निकलने से गड्ढे बन जाते थे। एक अन्य सिद्धांत के अनुसार, क्रेटर चंद्रमा की ज्वालामुखी गतिविधि के कारण बनते हैं, यानी ये ज्वालामुखी क्रेटर हैं जिनसे लावा निकला होगा और किसी समय चारों ओर फैल गया होगा। छेद के पास लगातार लावा का जमाव होते रहने से यह गड्डे बनना शुरू हो आगे होंगे | शुरू में इस विचार का कोई विरोध नहीं था क्योंकि इटली, इंडोनेशिया, जापान, हवाई द्वीप पर भी हमारी धरती पर ऐसे कई ज्वालामुखी क्रेटर देखे गए थे। लेकिन जब चंद्रमा की सतह को बारीकी से जांचा गया तो पता चला की यह क्रेटर उल्का पिंडो की टक्कर की वजह से बने है | चांद पर उल्काओं का गिरना आम बात है। हालांकि यह कथन पृथ्वी के लिए भी उतना ही सत्य है, लेकिन पृथ्वी पर वायुमंडल के चक्र के कारण स्थिति में काफी बदलाव आता है। वायुमंडल के घर्षण के कारण अधिकांश छोटे उल्काएं राख में बदल जाती हैं। यदि उल्का का आकार बड़ा होता है, तो कभी-कभी उल्का का कुछ भाग पृथ्वी की सतह तक पहुँच जाता है और सतह से टकराकर एक विशाल प्रभाव गड्ढा बन जाता है। एरिज़ोना (यूएसए), ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका में ऐसे कई क्रेटर की पहचान की गई है। भारत में महाराष्ट्र राज्य की वृत्ताकार लोनार झील के बारे में यह भी माना जाता है कि इसका निर्माण उल्कापिंड के बाद हुआ था। लेकिन चाँद पर कोई भी वायु मंडल न होने की वजह से उल्का पिंड आसानी से इसकी सतह से टकरा जाते है | जिसकी वजह से गड्डे बन जाते हैं | और इन्ही गड्डों का क्रेटर कहा जाता है |
और वैज्ञानिक जब भी चाँद की ज़मीन किसी नए गड्डे (Crater ) को खोजते हैं | तो किसी महान हस्ती के ऊपर इसका नाम रख देते हैं | इस बार जब इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ( International Astronomical union ) ने चाँद के दक्षिणी ध्रुव ( South pole ) पर एक क्रेटर की खोज की तो इसका नाम भी एक बहुत ही प्रसिद्द व्यक्ति के नाम पर रखा गया | और यह प्रसिद्द व्यक्ति है – मैथ्यू हेंसन ( Matthew Henson ) |
आखिर पूरा मिशन क्या है ( What is full Mission ? )
यह वो व्यक्ति है जो की 1909 में दुनिया के शीर्ष पर पहुँचने वाले कुछ चाँद लोगो में से एक थे | चलिए अब आपको बता दे की आखिर यह पूरी न्यूज़ क्या है | दरअसल यह नासा (NASA ) का एक मिशन है जिसका नाम है आंटेमिस | इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है हेंसन क्रेटर पर जाकर चाँद की सतह के बारे में और जानकारी जुटाना |इस खोज के लिए नासा कुछ अन्तरिक्ष यात्रियों का चुनाव करेगा जिन्हें नासा के अलग अलग विभाग (Department ) से चुना जाएगा |हेंसन क्रेटर चाँद की सतह पर दक्षिणी ध्रुव ( south pole ) पर मौजूद दो अन्य क्रेटर स्वेद्रूप ( Svedrup ) क्रेटर और डे गेर्लाचे ( De Gerlache ) क्रेटर के बीचो बीच मौजूद हैं |इस कार्यकर्म का मुख्य उद्देश्य ग्रहों (planets ) की प्रिक्रियाओ ( activities ) को समझना और इसके साथ चाँद और मंगल पर मानव अन्वेषण ( Human innovation ) के लिए एक सही और बुनियादी आधार शिला तैयार करना है | एक तरह से हम इसे आने वाले समय में चाँद और मंगल पर जीवन की संभावनाओ को खोजने की दिशा में पहला कदम भी बोल सकते हैं | लेकिन आखिर इस क्रेटर का नाम हेंसन के नाम पर ही क्यों रखा गया है ?आखिर यह हेंसन कौन है |
मैथ्यू हेंसन कौन थे ( Who is Matthew Henson )
हेंसन एक बहुत ही अनुभवी और अन्वेषक ( Explorer ) और कुशल बढ़ई थे और carpenter थे | यह 1866 में मैरीलैंड में जन्मे थे |
इन सभी के अलावा वो आर्कटिक अभियान में भाग लेने वाले चंद लोगो में सबसे आगे थे | आर्कटिक को लेकर यह सभी अभियान रोबर्ट पियरी ( Robert Peary )के द्वारा 18 वर्षो के दौरान चलाए गए थे |और इस अभ्यं में सबसे आखिरी पुश हेंसन ने बनाया था |