नोबेल पुरुस्कार को दुनिया का सबसे सम्मानित पुरूस्कार माना जाता है इस पुरुस्कार कि स्थापना नोबेल फाउंडेशन द्वारा स्वीडन के महान वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल कि स्मृति में सन 1901 में की गई थी | यह पुरूस्कार शांति ,साहित्य, भौतिकी ,रसायन , चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दिया जाता है | इस पुरूस्कार के स्वरुप स्वर्ण मेडल , 10 लाख डॉलर की राशी और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है |
नोबल पुरस्कार की स्थापना कैसे हुई –
नोबेल पुरूस्कार के संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल हैं |एक महान वैज्ञानिक थे उन्होंने लगभग 355 आविष्कार किये | सन 1876 में उन्होंने डायनामाइट का आविष्कार किया यह उनका सबसे अधिक प्रसिद्द आविष्कार है | सन 1896 में मृत्यु के पूर्व अपनी सम्पति का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने एक ट्रस्ट के लिए सुरक्षित कर दिया | वे चाहते थे कि इस धन राशी से हर वर्ष उन व्यक्तियों का सम्मान किया जाये जो लगातार मानव जाती के कल्याण के लिए कार्यरत है | सर्प्रथम 29 जून 1900 को नोबेल फाउंडेशन की स्थापना हुई और प्रथम नोबेल पुरुस्कार सन 1901 में प्रदान किये गए | किसी एक क्षेत्र में अधिकतम तीन लोगो को पुरूस्कार दिया जा सकता है |
2020 में नोबल पुरस्कार ( Nobel prize in 2020)
वर्ष 2020 भौतिकी के क्षेत्र में रोज़न पेनरोज़ ,रेनहार्ड गेंजेल और एंडरिया गेज़ को दिया गया है | रोज़न पेनरोज़ ने इस बात के स्पष्ट प्रमाण दिए कि ब्लैक होल का गठन सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत का सही और मज़बूत पूर्वानुमान है | रेनहार्ड गेंजेस और एंड्रिया गेज ने आकाशगंगा के केंद्र में एक सुपरमैसिव कॉम्पैक्ट ऑब्जेक्ट की खोज की है |
रोज़न पेनरोज़ की खोज —
सन 1783 में जॉन मिशेल ने सर्वप्रथम ब्लैक होल के सिद्धांत की कल्पना की बाद में सन 1916 में अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने सापेक्षता के सिद्धांत से इस परिकल्पना को पुनर्जीवित किया पर उन्होंने यह निश्चित नहीं किया की ब्लैक होल सचमुच निर्मित हो सकते है अब रोज़न पेनरोज़ ने अपनी खोज से यह साबित किया है कि सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार ही ब्लैक होल का निर्माण हो सकता है |
कृष्ण विवर क्या है ? (What is Black hole ?)
आज हम आपको बता रहे हैं कि ब्लैक होल क्या है ? नाम सुनकर कहीं आप इस भ्रम में तो नहीं हैं कि ब्लैक होल मतलब खाली जगह | अगर आप ऐसा सोच रहे है तो यह एकदम ग़लत है क्यूंकि ब्लैक होल का अर्थ है एक ऐसा स्थान है जहाँ गुरुत्वाकर्षण इतना तीव्र होता है कि प्रकाश भी बाहर नहीं निकल सकता है। अब यह कैसे संभव है तो कल्पना कीजिये कि एक विशाल तारा जो सूर्य से दस गुना अधिक विशाल है को एक छोटी सी जगह में संकुचित कर दिया गया हो तो क्या होगा ? गुरुत्वाकर्षण बहुत मजबूत होगा क्योंकि पदार्थ को एक छोटे स्थान में निचोड़ दिया गया है। यह तब ही संभव है जब कोई तारा नष्ट होने वाला हो | क्योंकि कोई प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता है, लोग ब्लैक होल नहीं देख सकते हैं। वे अदृश्य हैं। विशेष उपकरणों के साथ अंतरिक्ष दूरबीनें ब्लैक होल को खोजने में मदद कर सकती हैं। विशेष उपकरण यह देख सकते हैं कि कैसे जो तारे ब्लैक होल के बहुत करीब होते हैं वे अन्य तारों की तुलना में अलग तरह से कार्य करते हैं |
ब्लैक होल का निर्माण कैसे होता है ? ( How black hole is formed ? )
ब्लैक होल तब बनते हैं जब विशाल तारे अपने जीवनचक्र के अंत में फट जाते हैं। इस विस्फोट को सुपरनोवा कहा जाता है। यदि तारे का द्रव्यमान पर्याप्त है, तो यह अपने आप ही बहुत छोटे आकार में ढह जाएगा। अपने छोटे आकार और विशाल द्रव्यमान के कारण, गुरुत्वाकर्षण इतना मजबूत होगा कि यह प्रकाश को अवशोषित करेगा और एक ब्लैक होल बन जाएगा। ब्लैक होल अविश्वसनीय रूप से विशाल हो सकते हैं क्योंकि वे अपने चारों ओर प्रकाश और द्रव्यमान को अवशोषित करना जारी रखते हैं। वे अन्य सितारों को भी अवशोषित कर सकते हैं। कई वैज्ञानिक सोचते हैं कि आकाशगंगाओं के केंद्र में सुपर-विशाल ब्लैक होल हैं।
ब्लैक होल चार प्रकार के होते हैं:
लघु , मध्यवर्ती , तारकीय, सुपरमैसिव
लघु कृष्ण विवर – (Miniature Black holes)
सबसे छोटे ब्लैक होल को प्राइमरी ब्लैक होल के रूप में जाना जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रकार का ब्लैक होल एक परमाणु जितना छोटा होता है लेकिन इसका द्रव्यमान एक पर्वत के सामान होता है |
मध्यवर्ती कृष्ण विवर (Intermediate Black Holes )
एक मध्यवर्ती द्रव्यमान वाला ब्लैक होल (IMBH) 102-105 सौर द्रव्यमान में द्रव्यमान के साथ ब्लैक होल का एक वर्ग है: स्टेलर ब्लैक होल की तुलना में काफी अधिक लेकिन 105-109 सौर द्रव्यमान वाले विशालकाय ब्लैक होल से कम होता है |
तारकीय कृष्ण विवर ( Stellar Black Holes )
सबसे आम प्रकार के मध्यम आकार के ब्लैक होल को “तारकीय” कहा जाता है। एक तारकीय ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 20 गुना अधिक हो सकता है और यह लगभग 10 मील के व्यास के साथ एक गेंद के अंदर फिट हो सकता है। मिल्की वे आकाशगंगा के भीतर दर्जनों तारकीय ब्लैक होल मौजूद हो सकते हैं।
सुपरमेसिव कृष्ण विवर (Supermassive black Holes)
सबसे बड़े ब्लैक होल को “सुपरमैसिव” कहा जाता है। इन ब्लैक होल में संयुक्त रूप से 1 मिलियन से अधिक सूर्य हैं | वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि हर बड़ी आकाशगंगा में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल होता है। मिल्की वे आकाशगंगा के केंद्र में स्थित सुपरमैसिव ब्लैक होल को धनु ए कहा जाता है। इसका द्रव्यमान लगभग 4 मिलियन सूर्य के बराबर होता है और यह सूर्य के व्यास के बराबर की गेंद में फिट हो सकता है |
कृष्ण विवर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य –
• ब्लैक होल के पास गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव बहुत अधिक होता है जिसके कारण समय की गति धीमी हो जाती है | ब्लैक होल के निकट जाने पर समय की गति भी लगातार कम होती जाती है | • पृथ्वी के सबसे निकट का ब्लैक होल पृथ्वी से 1,600 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है | • ब्लैक होल्स की सीमा को इवेंट होरिजन कहा जाता हैं. इस बिंदु के आगे जाने के बाद कोई भी वापस नहीं लौट सकता | • ब्लैक होल से लगातार रेडिएशन का निष्काशन होता है | जितना रेडिएशन बाहर निकलता है उतना ही उसका द्रव्यमान कम होता जाता है , अंततः वो समाप्त हो जाते हैं |