पर्वतारोहण या पहाड़ चढ़ना शब्द का आशय उस खेल, शौक़ अथवा पेशे से है जिसमें पर्वतों पर चढ़ाई, स्कीइंग अथवा सुदूर भ्रमण सम्मिलित हैं।
पर्वतारोहण की शुरुआत सदा से अविजित पर्वत शिखरों पर विजय पाने की महत्वाकांक्षा के कारण हुई थी और समय के साथ इसकी 3 विशेषज्ञता वाली शाखाएं बन कर उभरीं हैं: चट्टानों पर चढ़ने की कला, बर्फ से ढके पर्वतों पर चढ़ने की कला और स्कीइंग की कला. तीनों में सुरक्षित बने रहने के लिए अनुभव, शारीरिक क्षमता व तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। पर्वतारोहण एक खेल, शौक या पेशा है जिसमें पर्वतों पर, चलना, लंबी पदयात्रा, पिट्ठूलदाई और आरोहण शामिल है। यूआईएए (UIAA) या यूनियन इंटरनेशनेल डेस एसोसिएशन्स डी’एल्पिनिसमे (Union Internationale des Associations d’Alpinisme), पर्वतारोहण तथा आरोहण के लिए विश्व भर में मान्य संस्था है जो पर्वतों तक जाने के रास्तों, चिकित्सा समस्यायों, बर्फ पर चढ़ाई, नवयुवक आरोही तथा पर्वत व आरोही की सुरक्षा से जुड़े अहम विषयों पर काम करती है।
बछेंद्री पाल, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला। सोचिए कि चमकते रंग वाला ट्रेकिंग सूट पहने हुए बेहद ठंडी हवाओं के बीच बर्फ से ढके पहाड़ों पर कांपते हाथों के साथ आप चले जा रहे हैं। बेहद अच्छा महसूस हो रहा है न! लेकिन पर्वतारोही बनना इतना भी आसान नहीं है। ये रोमांच से कहीं आगे का एहसास है, जहां आप जीवन के बहुत जरूरी पाठ भी पढ़ते हैं जैसे टीम वर्क, फ्लेक्सीबिलिटी, दृढ़ता और इससे भी ज्यादा शारीरिक मजबूती। उन युवाओं के बारे में सोचिए जिन्हें शेरपा बुलाया जाता है और जो पर्वतारोहियों के लिए गाइड का काम करके ही अपना जीवनयापन करते हैं।
बछेंद्री पाल
जन्म : 24 मई, 1954 (उत्तरकाशी, उत्तराखंड)
वर्तमान : ‘टाटा स्टील‘ कंपनी में पर्वतारोहण तथा अन्य साहसिक अभियानों की प्रशिक्षक
कार्यक्षेत्र : माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला
भारत की बछेंद्री पाल संसार की सबसे ऊंची चोटी ‘माउंट एवरेस्ट’ पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला हैं. बछेंद्री पाल संसार के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर ‘माउंट एवरेस्ट’ की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की 5वीं महिला पर्वतारोही हैं. इन्होंने यह कारनामा 23 मई, 1984 के दिन 1 बजकर 7 मिनट पर किया था.
भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही समय बाद इन्होंने इस शिखर पर चढ़ाई करने वाली महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया. इसी प्रकार वर्ष 1994 में बछेंद्री ने महिलाओं के साथ गंगा नदी में हरिद्वार से कोलकाता तक लगभग 2,500 किमी लंबे नौका अभियान का नेतृत्व किया. हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए कराकोरम पर्वत-श्रृंखला पर समाप्त होने वाला लगभग 4,000 किमी लंबा अभियान भी इनके द्वारा इस दुर्गम क्षेत्र में ‘प्रथम महिला अभियान’ था.
प्रारम्भिक जीवन
बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई, 1954 को वर्तमान उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) राज्य के उत्तरकाशी के पहाड़ों की गोद में हुआ था. उत्तराखंड राज्य के एक ग्रामीण परिवार में जन्मी बछेंद्री पाल ने स्नातक की शिक्षा पूर्ण करने के बाद शिक्षक की नौकरी प्राप्त करने के लिए बी.एड. का प्रशिक्षण प्राप्त किया. इन्हें स्कूल में शिक्षिका बनने के बजाय पेशेवर पर्वतारोही का पेशा अपनाने पर परिवार और रिश्तेदारों के तीव्र विरोध का सामना भी करना पड़ा था.
मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद इनको कोई अच्छा रोज़गार नहीं मिला. जो मिला वह भी अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था. इससे ये काफी निराशा हुईं और इन्होंने अस्थाई नौकरी करने के बजाय ‘नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग’ का कोर्स करने के लिये आवेदन कर दिया. यहां से इनके के जीवन को नई दिशा मिली. वर्ष 1982 में एडवांस कैम्प के दौरान इन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर ऊंचाई) और रूदुगैरा (5,819 मीटर ऊंचाई) की चढ़ाई को पूरा किया. इस कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी थी.
पर्वतारोहण का पहला मौक़ा
बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया, जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की. यह चढ़ाई इन्होंने किसी योजनाबद्ध तरीके से नहीं की थी. दरअसल वे स्कूल पिकनिक पर गई हुए थीं और उसी दौरान पहाड़ पर चढ़ती गईं और शिखर तक पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई. जब लौटने का खयाल आया तो पता चला की उतरना सम्भव नहीं है. ज़ाहिर है, रातभर ठहरने के लिये उन के पास पूरा इंतज़ाम नहीं था. बगैर भोजन और टैंट के इन्होंने खुले आसमान के नीचे रात गुजार दी.
एवरेस्ट अभियान
वर्ष 1984 में भारत का ‘चौथा एवरेस्ट अभियान’ शुरू हुआ. दुनिया में अब तक सिर्फ 4 महिलाएं ही एवरेस्ट की चढ़ाई में कामयाब हो पाई थीं. इस अभियान में जो टीम बनाई गई उसमें बछेंद्री के साथ 7 महिलाओं और 11 पुरुषों को भी शामिल किया गया था. इस टीम ने 23 मई, 1984 के दिन 1 बजकर 7 मिनट पर 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित ‘सागरमाथा’ (एवरेस्ट) पर भारत का झंडा लहराया. इस के साथ ही ये एवरेस्ट पर सफलता पूर्वक क़दम रखने वाली दुनिया की 5वीं महिला बनीं.
पर्वतारोहण के क्षेत्र में इनका योगदान
बछेंद्री पाल ने वर्ष 1984 के एवरेस्ट पर्वतारोहण अभियान में पुरुष पर्वतारोहियों के साथ शामिल होकर एवं सफलता पूर्वक संसार की सबसे ऊंची चोटी ‘माउंट एवरेस्ट’ पर पहुंचकर भारत का राष्ट्रीय ध्वज लहराया और एवरेस्ट पर विजय पाई. उनकी इस सफलता ने आगे भारत की अन्य महिलाओं को भी पर्वतारोहण जैसे साहसिक अभियान में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया. ये भारत की पहली महिला एवरेस्ट विजेता हैं तथा देश-विदेश की महिला पर्वतारोहियों के लिए प्रेरणा की श्रोत भी हैं.
बछेंद्री पाल वर्तमान में ‘टाटा स्टील’ इस्पात कंपनी में कार्यरत हैं, जहाँ ये चुने हुए लोगों को पर्वतारोहण के साथ अन्य रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देने का कार्य कर रही हैं.
पर्वतारोही कैसे बनें?
पर्वतारोहण के प्रकार
बछेंद्री पाल ने जब इस करियर की ओर कदम बढ़ाए तो ये एक पुरुष प्रधान करियर था। और उनके आने से पर्वतोहियों के बीच एक नया उत्साह भर गया था। पर्वतारोहण को ऐसे खेल के तौर पर जाना जाता है जो बर्फ के पहाड़ों को चढ़ने के इर्द-गिर्द ही घूमता है। आपको ये बताने से पहले कि पर्वतारोही कैसे बनें?, हंम आपको ये बता देते हैं कि पर्वतारोहण के कितने प्रकार हैं-
- अल्पाइन क्लाइम्बिंग (Alpine Climbing): अल्पाइन क्लाइम्बिंग का मतलब सख्त पहाड़ों को चढ़ना है। ऐसे पहाड़ आमतौर पर कम ऊंचे होते हैं। इस पर चढ़ाई करने के लिए आपको एंकर, रस्सी, हार्निस और ट्रेड गियर की जरूरी पड़ती है।
- ग्लैशीऐटिड पीक्स (Glaciated Peaks): वो पहाड़ जो पूरे साल बर्फ से ढके रहते हैं वो ग्लैशीऐटिड पीक कहलाते हैं। ऐसे पहाड़ों पर चढ़ने के लिए आपको ग्लेशियर ट्रेवल (glacier travel) की ट्रेनिंग लेनी पड़ती है। इसके लिए आपको कुछ खास टूल्स की जरूरत होती है जैसे एंकर, रस्सी, क्रैंपन (crampons) और आइस एक्स (ice axe) आदि।
- स्क्रैम्बलिंग (Scrambling): उन पहाड़ों को चढ़ना जो छोटे होते हैं और जिन पर चढ़ने के लिए खास ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है, स्क्रैम्बलिंग कहलाता है। इसमें कोई खास इक्विपमेंट (equipment) की जरूरत भी नहीं होती है। स्क्रैम्बलिंग (scrambling) के लिए सामान्य हैलमेट और नी पैड (knee pads) की जरूरत होती है।
- हाई-एल्टीट्यूड क्लाइम्बिंग (High-Altitude Climbing): 18000 फीट से ऊंचे पहाड़ों को चढ़ना इस श्रेणी में आता है। इन पहाड़ों पर चढ़ने वाले पर्वतारोही रॉक और स्नोइ दोनों ही क्लाइम्बिंग में परफेक्ट होने चाहिए।
पर्वतारोही बनने के लिए जरूरी स्किल
पर्वतारोही कैसे बनें? इसका जवाब जानने के लिए पहले ये समझ लें कि पर्वतारोहण एक स्किल बेस्ड फील्ड (skill-based field) है और इसके लिए पर्वतारोही के पास कुछ लाइफ स्किल होने चाहिए जैसे:
- शारीरिक और मानसिक मजबूती
- धैर्य
- लीडरशिप
- दृढ़ता
- क्रिटिकल थिंकिंग एबिलिटीज
शारीरिक क्षमता (Fitness Requirements)
पर्वतारोही कैसे बनें?, आप भी जानना चाहते हैं तो आपकी चेकलिस्ट में सबसे पहला टिक आपकी शारीरिक क्षमता पर होना चाहिए। इस फील्ड के लिए सबसे जरूरी आवश्यकता स्वस्थ्य शरीर ही है। इसका मतलब है लंबे ट्रेक के लिए या उच्च तापमान के लिए अपने शरीर को तैयार करना। अपने शरीर पर काम करना शुरू करें और उद्देश्य निश्चित करें। रोज एक्सरसाइज से भारी वर्कआउट की आदत पड़ जाएगी। एक्सरसाइज के साथ रोज संतुलित भोजन भी जरूरी होगा। 8 से 10 घंटे लगातार चढ़ाई करना कोई ऐसा काम नहीं है जो रातों रात आ जाएगा। लेकिन अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए मेहनत करती रहें।
धैर्य
धैर्य का अर्थ है, जब तुरंत परिणाम ना मिल रहा हो फिर भी सही काम को करते जाना| धैर्य कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति की सहनशीलता की अवस्था है जो उसके व्यवहार को क्रोध या खीझ जैसी नकारात्मक अभिवृत्तियों से बचाती है। दीर्घकालीन समस्याओं से घिरे होने के कारण व्यक्ति जो दबाव या तनाव अनुभव करने लगता है उसको सहन कर सकने की क्षमता भी धैर्य का एक उदाहरण है।
परेशानियों से भागने की जगह यह सोचें कि आप उससे कैसे निकल सकते हैं. अपने मन को समझाएं कि आज परेशानी से भागेंगे, तो हो सकता है कल दोबारा इसी समस्या का सामना करना पड़े. अगर आप समस्या का समाधान निकालने में सफल नहीं हो पा रहे हैं, तो किसी समझदार व्यक्ति की मदद ले सकते हैं
लीडरशिप
एक अच्छा टीम लीडर बनने के लिए इन गुणों को अपनाना है जरूरी
- निर्णय क्षमता
- जिम्मेदारी की भावना
- इमोशनल इंटेलिजेंस
- कम्यूनिकेशन स्किल
दृढ़ता
दृढ़ता का अर्थ होता है अपने फैसले पर डटे रहना | जब मुश्किल काम करते हुए कई बार हमें ऐसलागता है की हमने यह रास्ता क्यों चुन लिया , तब हमारा मन करता है की हम अपना रास्ता बदल ले , ऐसे में जो अपने फैसले पर डाटा रहता है अंत में सफलता उसी की होती है|
Critical thinking skills
दरअसल Critical thinking skills हमारे सोचने का ही एक तरीका है जिसमे हम एक Logical और Free thinking के साथ किसी problem का Suitable solution निकालते हैंl वास्तव में क्रिटिकल थिंकिंग का मतलब आप खुद के बारे में सोच सके की आप किसी काम को किस बेहतर ढंग से कर सकते हैं|
पर्वतारोही को कैसी परेशनियों का सामना करना पड़ सकता है
-सांस लेने में दिक्कत
ऊंचाई पर हवा के विरल होने पर वहां ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। अभ्यस्त पर्वतारोही हो अथवा प्रथम बार अभियान पर जाने वाले हो, प्रत्येक को नई परिस्थिति के अनुसार अपने आप को अनुकूल बनाना होता है।साधारणतः 7,000 मीटर से ऊंचे पर्वतीय अभियान के लिए कृत्रिम ऑक्सीजन का उपयोग आवश्यक हो जाता है। हालांकि कुछ पर्वतारोही बिना ऑक्सीजन उपयोग के ही माउंट एवरेस्ट जैसे अभियान को सफलतापूर्वक पूरा कर आए, लेकिन फिर भी उन्हें योजनानुसार अपने आप को प्रतिकूल परिस्थितियों में ढालना पड़ा।
-पर्वतों पर होने वाली बीमारियाँ
2,400 मीटर की ऊंचाई पर चढ़ने से पहले, ठीक से अपने आप को अनुकूल न बनाने पर तीव्र पर्वतीय बीमारियों के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। सिरदर्द, मितली आना, थकान, चक्कर आना, सांस फूलना, भूख कम लगना, पाचन क्रिया का बिगड़ जाना और कभी-कभी अचानक मृत्यु हो जाना आदि कुछ उदाहरण हैं। पर्वतीय रोगों के अनेक रूपों में कुछ अति घातक रोग भी हैं जैसे ‘हाई एल्टिटयुड सेरेब्रल एडीमा’ और ‘हाई एल्टिटयुड पल्मोनरी एडीमा’ इन दोनों अवस्थाओं में रोगी 24 घंटों में ही मर सकता है। दर्दनाशक औषधि अथवा ‘स्टेरोयड’ का उपयोग इन रोगों में लाभप्रद हो सकता है।
-ऊंचे पर्वतों पर तेज़ धुप का असर
पर्वतों की ऊंचाई पर हवा का घनत्व कम होने के कारण पराबैंगनी किरणों का प्रभाव भी अधिक अधिक होता है। परिणामस्वरुप तेज धूप से त्वचा का जल जाना तथा अन्य चर्म रोगों का हो जाना कोई आश्चर्य नहीं है। बदली छायी रहने पर भी भारी हिम से किरणें परिवर्तित हो कर त्वचा को जला सकती हैं।
अत्यधिक समय बर्फ में बिताने से बर्फ से परावर्तित किरणें अंधेपन का भी कारण बन सकती हैं। आंखें सूज जाती हैं, सिर में दर्द रहता है और चक्कर आने लगते हैं। इसी कारण पर्वतारोही के लिए धूप के चश्मे का उपयोग अति आवश्यक हो जाता है। सन् 2005 में पर्वतारोही व अनुसंधानकर्मी जोन सेम्पिल ने बताया कि तिब्बत के पठार पर ओज़ोन गैस की अत्यधिक मात्रा पर्वतारोहियों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।
-मौसम का अचानक बदलना
पर्वतों पर घटित होने वाली अनेक दुर्घटनाएं प्रतिकूल मौसम से ही सम्बंधित रहती हैं। यह तो निश्चित ही है कि पर्वतों का मौसम आकस्मिक रुप से बदलता रहता है जो कभी-कभी अत्यन्त प्रचण्ड हो सकता है। आश्चर्य तो तब होता है जब तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे लेकिन खुला आकाश, तेज धूप तथा अन्य स्थितियों में जब तापमान थोड़ा अधिक लेकिन ठंडी हवाओं के कारण कंपकपाती ठंड पड़ती है जो कि शारीरिक विकृतियां जैसे ‘विंड बर्न’ अथवा शरीर ऊतकों का जल स्तर कम हो जाना (डिहाइड्रेशन) आदि को पैदा करती है।
-पीने योग्य पानी की समस्या
पर्वतारोहियों को डिहाइड्रेशन से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पेयजल रखना आवश्यक होता है। कभी-कभी आकस्मिक स्थितियों में शरीर तथा उसके ऊतकों के जल की हानि रोकने हेतु पर्वतारोही (1) विश्राम करते हैं। (2) गर्म जमीन पर न बैठ छाया में ही रहने का प्रयास करते हैं। (3) कम से कम भोजन लेते हैं। (4) धूम्रपान /मदिरा पान नहीं करते और (5) नाक से सांस लेते हैं, बातचीत कम से कम करके अपनी शक्ति का संचय करते हैं।
-अत्यधिक बर्फ और कम तापमान के कारण होने वाली परेशानियाँ
अभियान के समय यदि शरीर के बाहरी भाग जैसे कि उंगलियां आदि को यथा सम्भव रूप से गर्म न रखा जाये तो गहन शीत के कारण फ्रॉस्टबाइट यानी तुषार उपघात नामक बीमारी के फलस्वरुप विकृत भाग नीला पड़ जाता है और यदि समय पर उपचार न हो तो विकृत भाग सड़-गल सकता है तथा शरीर का वह भाग कटवाना भी पड़ सकता है। इस संभावित विकृति से बचने के लिये आवश्यक गर्म कपड़े का उपयोग जरूरी है।
एक संभावित विकृति ‘हाइपोथर्मिया’ (शरीर का तापमान अचानक कम हो जाना) है। ऐसा होने पर शरीर जम सा जाता है, रक्त का प्रवाह भी शिथिल पड़ जाता है और कभी-कभी मृत्यु तक हो सकती है।
इसी कारण पर्वतारोहियों को आवश्यक गर्म व ऊष्मारोधी (इन्सूलेटेड) वस्त्रों का समूचित उपयोग करना चाहिये। इसके साथ ही जलरुद्ध पोशाकों का भी समुचित प्रबन्ध करना चाहिये। गीले कपड़े तेज हवाओं में करीब 90 प्रतिशत अपनी ऊष्मारोधिता क्षमता खो देते हैं।
पर्वतारोहण अभियान
उत्तराखंड क्षेत्र में रक्षावार ग्लेशियर के लिए 12 मई को उत्तराखंड क्षेत्र में जाने वाले 13 पर्वतारोहियों के नौसेना पर्वतारोहण अभियान ने 29 मई को 0715 बजे सफलतापूर्वक माउंट सैफी पर चढ़ाई की। कुल 9 सदस्य चोटी को शिखर सम्मेलन में सक्षम थे, जिसे एक प्रशंसनीय उपलब्धि माना जाता है यह 07 साल की अवधि के बाद आता है। चोटी का सफल शिखर निकट भविष्य में अधिक चुनौतीपूर्ण चोटियों को मापने के प्रयासों की तैयारी में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। टीम 04 जून 15 को दिल्ली पहुंची।